उपन्यास अंतिम अरण्य में स्मृति तत्व और भारतीय दर्शन
निखिल झा
केंद्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी संस्थान] एन.सी.ई.आर.टी] नई दिल्ली
सारांश
निर्मल वर्मा हिंदी कथा–साहित्य के एक महत्त्व्पूर्ण स्तंभ रहे हैं। उनके कथा–संसार का एक प्रमुख केंद्र ‘नया मनुष्य रहा है जो जीवन की विषमताओं से निरंतर संघर्षशील है। चाहे ‘^परिंदे* की ‘^लतिका* हो या फिर ‘^एक चिथड़ा सुख* का ^मुन्नू* सभी जीवन के विभिन्न पहलूओं से संघर्षरत हैं । इसी श्रृंखला में उपन्यास ^अंतिम अरण्य* भी आता है जिसका कथ्य ‘मृत्युबोध ‘जीवन की सार्थकता व अकेलेपन से साक्षात्कार कराता है। इस शोध पत्र में स्मृति –तत्व के आधार पर उपन्यास अंतिम अरण्य का पुनर्मूल्यांकन करने का प्रयत्न किया गया है व साथ ही उपन्यास के अन्य आयामों जिसमें दर्शन भी शामिल है पर विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है।